Are you searching for Short Stories with Moral Values? Now you are in the perfect place. Here we published everyday Interesting Moral Stories in Hindi. Now our today’s Moral Story is “परमार्थ करो”.
मित्रों! यह एक ऐसा Website है जहां हम रोज एक ऐसे ही Short Stories with Moral Values में Share करते हैं! जो व्यक्ति को एक नैतिक सीख देती है और जीने की कला सिखाती है|
दोस्तों इसमें प्रेषित सभी Moral Stories पाश्चात्य काल के किसी न किसी दैनिक जीवन में घटित घटना से संबंधित है! या फिर लोगों द्वारा कथित तौर पर कही गई है| जो आज निश्चित तौर पर हमारे दैनिक जीवन में घटित होती है!
So Friends! Today’s our
INTERESTING MORAL STORY
“परमार्थ करो”
कड़ाके की धूप! उस वर्ष गर्मी कुछ अधिक ही पड़ी थी| बाहर से आया एक यात्री गांव से गुजर रहा था, प्यास से वह व्याकुल था लेकिन गांव भर में पानी पीने के लिए उसे एक भी कुआं या तालाब नजर न आया|
आगे जाने पर यात्री ने देखा कि एक पेड़ के नीचे प्याऊ थी| निकट जाने पर यात्री ने देखा कि एक व्यक्ति वहीं बैठा था, शरीर पर वस्त्र के नाम पर धोती भर ही थी| उसने यात्री को जल पिलाया और पेड़ की छाया में दो पल सुस्ता कर तब आगे जाने के लिए कहा|
Short Stories with Moral Values
यात्री ने पूछा: तुम क्या काम करते हो?उसने उत्तर दिया: हे श्रेष्ठ! मैं तो एक अनपढ़ घांसी हूं| सुबह शाम घास काटता हूं और उसे बेचकर जो पैसा मिलता है उसी से गुजर बसर करता हूं|उसी कमाई में थोड़ी बहुत बचाव करके जो जमापूंजी इकट्ठा की थी उससे यह प्याऊ बनाया है|
वह कहता जा रहा था मुझे यह देखकर बहुत तकलीफ होती थी कि गर्मी में लोग प्यास से बेहाल हो पानी ढूंढते थे और पानी पीने के लिए कोई साधन नहीं था| अतः मैंने और मेरे परिवार ने एक समय भोजन पर रहकर कुछ धन एकत्र किया और यह पियाऊ बनाया|अब मुझे बहुत शांति महसूस होती है|
घांसी की भोली और निस्वार्थ सेवा देखकर यात्री द्रवित हो गया, उसने सोचा कि जब यह निर्धन घासी जिसके पास संपत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं है, वह एक समय भूखे रहकर भी आने जाने वालों की सुविधा के लिए सोचता है, लोक कल्याण के लिए सोचता है| फिर उसकी अपेक्षा मेरे पास तो काफी संपत्ति है, धन है, फिर मैं क्यों नहीं घांसी जैसा सोचता हूं|
यात्री ने एक ठोस निर्णय लिया कि अब मैं अपना जीवन धन-संपत्ति परमार्थ में ही लगाऊंगा|यही यात्री आगे चलकर भानुभक्त के नाम से नेपाल में प्रसिद्ध हुआ|
Moral:
धन्यवाद!
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