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So Friends! Today’s our
INTERESTING MORAL STORY
“गुरु सेवा“
गंगा नदी के किनारे स्वामी जी का आश्रम था स्वामी जी की दिनचर्या नियमित थी| जो प्रातकाल स्थान से प्रारंभ होती थी, उसके सभी शिष्य भी जल्दी उठकर अपने कार्यों से निवृत्त होते और फिर गुरु सेवा में लग जाते, उनके स्नान ध्यान से लेकर अध्यापन कक्ष की सफाई व आश्रम के छोटे-मोटे कार्य शिष्य गण ही करते थे|
एक सुबह स्वामी जी एक संत के साथ गंगा स्नान कर रहे थे| तभी स्वामी जी अपने एक शिष्य को गंगा जी में खड़े-खड़े ही आवाज लगाई, शिष्य दौड़ा-दौड़ा चला आया|स्वामी जी ने कहा: बेटा! मुझे गंगाजल पीना है|
शिष्य आश्रम के भीतर से लोटा लेकर आया और उसे बालू से मांजकर चमकाया, फिर गंगा जी में उतर कर पुनः लोटा धो कर गंगाजल भरकर गुरु जी को थमाया| स्वामी जी ने अंजलि भरकर लोटा में से जल पिया, इसके बाद शिष्य खाली लोटा लेकर लौट गया|
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यह सब देखकर साथ नहा रहे संत ने हैरान होते हुए पूछा: स्वामी जी! जब आपको गंगाजल हाथों से ही पीना था तो शिष्य से व्यर्थ परिश्रम क्यों करवाए ? आप यहीं से जल लेकर पी लेते|
इस पर स्वामी जी बोले: यह तो उस शिष्य को सेवा देने का बहाना भर था| सेवा इसलिए ही की जाती है कि व्यक्ति का अंतः करण शुद्ध हो जाए और वह विद्या का सच्चा अधिकारी बन सके, क्योंकि बिना गुरु सेवा के शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती|
चाणक्य निति में कहा गया है, कि जिस प्रकार कुदाल से मनुष्य जमीन को खोदकर जल निकाल लेता हैं|उसी प्रकार गुरु की सेवा करने वाला शिष्य गुरु के भीतर में दबी शिक्षा को प्राप्त कर सकता है|
Moral:
- गुरु और माता-पिता की सेवा ही अंतःकरण को शुध्द करती हैं|
- गुरु की सेवा करने वाला शिष्य गुरु के भीतर में दबी शिक्षा को प्राप्त कर सकता है|
धन्यवाद!
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Nice story bro….?
thank you sir!